Anil Trivedi articles
Friday, December 10, 2021
Tuesday, July 27, 2021
मानव बनाम महामारी
युद्धशास्त्र का यह सामान्य सिद्धांत हैं कि हमलावर को परास्त करने के लिये जिन पर हमला होता हैं उन सबने पूरी एकाग्रता से हमलावर को घेर कर परास्त करना चाहिये।हमारी इस विशाल धरती के सबसे बुद्धिशाली मानवों पर ही धरती के हर हिस्से पर महामारी का हमला हुआ है।युद्धशास्त्र के कायदे से तो इस धरती के बुद्धिनिष्ट मनुष्यों को वैश्विक एकजूटता के साथ इस महामारी से मुकाबला करना चाहिये।पर देश और दुनिया के मनुष्य एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं की महामारी फैलाने के लिये ये जवाबदार तो वो कहे मैं नहीं वो जवाबदार।एक तरफ हम दावा कर रहे हैं हम सब महामारी से युद्ध लड़ रहे हैं।तो दूसरी तरफ मनुष्य सारी दुनिया में आपस में संवाद की जगह विवाद कर रहे हैं।एक दूसरे पर ऐसे दोषारोपण कर रहे जो सामान्य काल में भी हम एक दूसरे पर नहीं लगाते।महामारी तो सारी दुनिया में फैल गयी ,हम सब एकजुट हो महामारी का मुकाबला करने से चूक गये,यही आज की दुनिया और दुनिया के मानव मनों की बुनियादी कमी हैं कि हम समस्या का समाधान करने के बजाय मन की संकीर्णता में ही उलझते रहते हैं।ध्यान के भटकाव से ध्येय हांसिल नहीं होता।
संविधान की दृष्टि बनाम समाज और राजकाज में दृष्टिभेद
भारत का संविधान अपने नागरिकों के बीच कोई या किसी तरह का भेद नहीं करता।संविधान ने सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता का मूलभूत अधिकार दिया हैं।पर दैनन्दिन व्यवहार में भारतीय समाज में नामरुप के इतने भेद हैं और संविधान के तहत चलने वाले राजकाज की कार्यप्रणाली भी भेदभाव से मुक्त नहीं हैं।इस तरह भारतीय समाज में समता के विचार दर्शन को मान्यता तो हैं पर दैनन्दिन व्यवहार में या आचरण में पूरी तरह समता मूलक विचार नहीं माना जाता।भारत में सामाजिक असमानता और भेदभाव को लेकर कई विशेष कानून बने पर सामाजिक असमानता और भेदभाव की जड़े उखड़ने के बजाय कायम हैं।
धरती की जीवन और भोजन श्रृंखला
जीवन और भोजन दोनों एक दूसरे से इस कदर एकाकार हैं कि दोनों की एक दूसरे के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं।जीवन हैं तो भोजन अनिवार्य हैं।भोजन के बिना जीवन की निरंतरता का क्रम ही खण्डित हो जाता हैं।जीवन श्रृखंला पूरी तरह भोजन श्रृखंला पर हीं निर्भर हैं।कुदरत ने धरती के हर हिस्से में किसी न किसी रूप में जीवन और भोजन की श्रृखंलाओं को अभिव्यक्त किया हैं।कुदरत का करिश्मा यह हैं कि जीवन और भोजन का धरती पर अंतहीन भंड़ार है ,जो निरन्तर अपने क्रम में सनातन रूप से चलता आया हैं और शायद सनातन समय तक कायम रहेगा।शायद इसलिये की जीवन का यह सत्य हैं कि जो जन्मा हैं वह जायगा।तभी तो जीव जगत में आता जाता हैं पर जीवन की श्रृखंला निरन्तर बनी रहती हैं।यहीं बात भोजन के बारे में भी हैं।भोजन की श्रृखंला भी हमेशा कायम रहती है,बीज से फल और फल से पुन:बीज।बीज के अंकुरण से पौधे तक और पौधे से फूल,फल और बीज तक का जीवन चक्र।इस तरह जीवन श्रृखंला और भोजन श्रृखंला एक दूसरे से इस तरह धुलेमिले या एकाकार हैं की दोनों का पृथक अस्तित्व ढूंढ़ना एक तरह से असंभव हैं।