Saturday, March 12, 2011

शंकरलाल बागड़ी - चलते-फिरते सन्दर्भ ग्रन्थ थे वे -- अनिल त्रिवेदी



शंकरलाल बागड़ी समकालीन मध्यप्रदेश के विख्‌यात अभिभाषक और न जाने कितनों के मित्र व मार्गदर्शक तो थे ही, पर गहरे चिन्तक, दार्शनिक होने के साथ ही जीवन की जिन्दादिली के सच्चे उपासक थे। अच्छे वकील से लोगों की अवधारणा प्राय: यह होती है कि उसके पास वकालत का अन्दाज अपने आप में अनोखा था। विधि एवं न्याय शास्त्र के सारे सिद्धान्त उनके दिमाग में जीवन्त भरे पड़े थे। विधि ही नहीं, ज्ञान का समूचा महासागर उनके मन मस्तिष्क में सदैव व तत्काल उपलब्ध रहता था। उन्हें कभी सन्दर्भ के लिए पुस्तकों व ग्रन्थों की जरूरत नहीं होती थी। वे चलते-फिरते सन्दर्भ ग्रन्थ थे। समकालीन समय में प्राय: अधिकांश लक्ष्मीपुत्र धन संपत्‌ित के जोड़ बाकी गुणाभाग में ही अपना जीवन व्यतीत करने वाली जिन्दगी पसन्द करते हैं, पर बागड़ी लक्ष्मीपुत्र होते हुए भी जिन्दगी के अनुभवों, जिन्दादिली या जिन्दगी के सरस्वती साधक रूप के जीवन यात्री थे। उनका समूचा जीवन जो कुछ भी हमारी धरती पर बिखरा पड़ा है, उसे जानने, समझने और सीखते रहने की सहज, सरल यात्रा थी। वे लोकतन्त्र, मानव अधिकार व लोक अदालत को बढ़ाने वाले आन्दोलनों से आजीवन जुड़ रहे। वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित लोक स्वतन्त्रता संगठन (पीयूसीएल) मध्यप्रदेश के अध्यक्ष रहे। नर्मदा बचाओ आन्दोलन तथा पश्चिम मप्र के आदिवासी अंचल में चल रहे परिवर्तन धर्मा जन आन्दोलनों से उनका गहरा जुड़ाव था। जीवन के किसी भी विषय पर साधिकार व समाधानकारी बातचीत किसी भी आयु के व्यक्ति से पूरी गंभीरता व सहजता से करना और उसमें घुलमिल जाना उनके व्यक्तित्व की अनोखी विशेषता थी। उनसे मिलने आने वालों की तो एक तरह से पूरी शंकरजी की बरात ही थी। धन्ना सेठों से लेकर निपट दरिद्र तक, घोर बुद्धिजीवी से लेकर निपट बुद्धिहीन तक उनके मुरीदों का एक बड़ा समुदाय है। शंकरलाल बागड़ी आत्मविश्वास का दूसरा नाम है। उनमें स्वयं तो अदम्‌य आत्मविश्वास था ही, पर वे दूसरों में भी आत्मविश्वास पैदा करने वाली वकालात लोगों को सिखाते रहते थे। उन्होंने न जाने कितने लोगों को मुकदमा बनाकर दिया और कहा अपनी लड़ाई खुद लड़ो। ऐसा कहना- ऐसा बोलना। वे लोगों को अपनी लड़ाई खुद लड़ना सिखाते थे। विधि के जिन विद्यार्थियों ने कक्षा में उनसे पढ़ा है, वे यह देखकर ही अपने गुरु की विद्वता पर मुग्ध हो जाते थे कि यह कैसा गुरु है जिसे पढ़ाते समय किसी पुस्तक या नोट्‌स की जरूरत ही नहीं होती। बिना किसी सन्दर्भ सामग्री के विधि के गूढ़तम सिद्धान्तों को कितनी सहजता सरलता से अपने विद्यार्थियों को समझा देते थे। लोक राजनीति में उनकी गहरी रुचि और भागीदारी थी। वंचितों के हकों के लिए और अन्याय के शिकार लोगों के लिए वे सड़क से लेकर न्यायालय तक संघर्ष में साथ देते थे। वे निर्वाचन कानून व संवैधानिक मामलों के गहरे जानकार थे। उनकी सोच, कार्यशैली व जिन्दगी सबके आकर्षण का विषय थी। वे किसी से डरते नहीं थे, सत्‌ता और संपत्‌ित के रौब में वे कभी नहीं आते थे। उन्होंने हमेशा लोगों के साथ उनका अपना बनकर, उनके संघर्ष व आन्दोलनों के साथ मजबूती से खड़े रहने की ही कोशिश की। लोकभाषा के पक्षधर होते हुए भी उनके अंग्रेजी ज्ञान का लोहा मानते थे। हिन्दी-अंग्रेजी में उन्होंने सामयिक विषयों पर काफी लिखा। किसी को सरलता से सहज ही निसंकोच उपलब्ध रहे, यही उनकी संपूर्ण जिन्दगी की सबसे बड़ी विशेषता थी। क्ख् मार्च क्फ्म्े को जन्मे बागड़ी अक्सर कहते थे कि मैंने अपनी जिन्दगी में साइकिल, स्कूटर, मोटरबाइक, जीप, कार, ट्रक, ट्रैक्टर, बुलडोजर, हवाईजहाज से लेकर बैलगाड़ी-तांगा तक चलाया पर पानी का जहाज चलाना रह गया। अपनी यह इच्छा पूरी किए बिना ही वे ख्म् फरवरी ख्0क्0 को हमारे बीच से चले गए। पर सबकुछ चलाने के बाद भी उन्हें पैदल चलना बहुत पसन्द था। उनका मानना था कि हम सब आज तक जितना जानते हैं उससे अधिक नहीं जानते हैं। इसी कारण हम को अपने ज्ञान का बखान करने के बजाय हमें अपने अज्ञान का भान होना चाहिए, तभी हम नित नई बातें सीख सकते हैं। |भ्वीं जयन्ती पर उनका सादर स्मरण।

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