Tuesday, February 15, 2011

विचार की शक्ति बनाम शक्ति का विचार

इस सृष्टि में कुदरत ने मानव शरीर को मष्तिष्क के रूप में एक ऐसी शक्ति प्रदान की है, जिसके विस्तार का कोई और - छोर नही है। असीम और अनंत की तरह ही सोच -विचार के विस्तार कोई सीमा और अंत नही है, फिर भी मानव समूह ने विचारो की कई धाराओ को अपने हिसाब से बांधने की कोशिश की है। आज की दुनिया में जो कुछ भी अच्छा या बुरा घटित या सृजित हुआ हिया, उसके मूल में कहीं न कहीं, किसी न किसी मनुष्य के विचार या मनुष्यों की विचार श्रंखला का स्वरूप साकार हो जाता है।

सृष्टि पर मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जिसने अन्य विचारों से न केवल धरती के जीवनक्रम या अन्तरिक्ष के रहस्यों को भी अपने विचार के बल पर जानने की कोशिश की है। आज तक हमें जो ज्ञान हासिल हुआ, उसके अनुसार हम अभी तक कोई ऐसा प्राणी नही खोज पाएं है, जिसने अपने विचारों की शक्ति के बल पर इतनी अधिक मात्रा में अपने वैचारिक हस्तक्षेप से इतना अधिक संहार एवं सर्जन किया है।

विचारशीलता एक ऐसा आभूषण है, जिसे मनुष्य या मानव समूहों ने हर परिस्थितियों में अपने मन में धारण कर रख है। विपन्न से विपन्न व्यक्ति से लेकर सम्पन्न से सम्पन्न मनुष्य विचार विनिमय के बिना जी नही सकता। उसके पास जितनी भी ज्ञानेन्द्रियाँ है, उन सबकी प्राणशक्ति मस्तिक्ष्क की विचारशीलता से जुड़ी हुई है।

जन्म से मृत्यु तक की जीवन यात्रा को हम ज्ञानेन्द्रियों और मस्तिक्ष्क के आपसी समन्वय को निरंतर अपने प्राकृतिक अनुभव से सहज ही सीखते हुए पूरा करते है। जीवनयात्रा में विचार ही हमें अपने जीवन के प्रश्नों, जीवन की सफलता - असफलता, मन में उपजी आशा निराशा, हिंसा-अहिंसा या प्रेम और घृणा के बीच समाधानकारी वैचारिक विकल्प सुझाकर जीवनयात्रा को कई तरह के अनुभवों से गुजरने का निरंतर अवसर देती है।

स्वयं विचार करना और विचार के स्वरुप का अन्य लोगो के साथ निजी या सामूहिक स्तर पर विनिमय या प्रचार करना जीवन की यात्रा का ऐसा आयाम है जिससे प्रत्येक मनुष्य जीवनभर प्रत्यक्ष साक्षात्कार करता है। इसी का नतीजा है की विचार कभी मरता नही, पर उसका साकार शरीर हर क्षण किसी न किस रूप में मृत्यु या विनाश की और काल क्रमानुसार जन्म से मृत्यु के छोर की सीमा में, इस सृष्टि में, हर क्षण कही न कहीं नए जन्म के रूप में, नए विचार, नए विस्तार की संभावना का नया सूर्योदय है तथा मृत्यु के रूप में पुराने विचार इतिहास से पृष्ठ के रूप में मनुष्य समाज में कही न कहीं दर्ज होते रहते है।

आज भी इस दुनिया को, हम मनुष्य की विचारशक्ति की जीवंत प्रयोगशाला
की संज्ञा दे सकते है। हमारा हर विचार इस जगत के प्राकृतिक घटनाक्रम को, अपने जीवनकाल में अनुभव करने या भोगने तक ही सीमित nahi रहा है, वरन मनुष्य ने अपने प्राकृतिक अनुभव से बचने, सुरक्षा प्राप्त करने की दिशा में अपनी विचारायात्रा को मोडा है। उदहारण स्वरुप वृक्ष का आश्रय या आवास के रूप मैं प्राकृतिक रूप से कई प्राणियों ने अपने जीवनकाल में उपयोग किया है, जैसे अन्य प्राणियों से सुरक्षा से पक्षियों ने वृक्ष की ऊंचाई या शाखाओं का उपयोग अपना घोंसला बनने में किया या कुछ पक्षियों एवं प्राणियों ने वृक्ष की प्राकृतिक रचना में शाखाओं , पत्तियों या तने या शाखाओं में बने कोटरों या स्थलों का उपयोग अपने बचाव या आश्रय स्तःल के रूप में किया। पर मनुष्य ने अपनी विचारशीलता के साथ वृक्ष के जीवन की विविध अवस्थाओं का अपने निजी और सार्वजनिक जीवन की भौतिक आवश्यकताओं के विस्तार द्वारा असंख्य रचनाओं के रूप में वृक्ष के उत्पादों एवं स्वरुप का सर्जन किया है। वह अकेला ही मनुष्य की विचार शक्ति का अनूठा दस्तावेज है , जिस पर हम सब अपना वैचारिक पराक्रम मानकर आत्ममुग्ध है। पक्षी या अन्य प्राणियों ने बिना आत्ममुग्ध हुए वृक्ष को यथावत जीवीत रहने दे कर अपना आश्रय बनाया , पर हमने अपने उपयोग , लोभ-लालच के वशीभूत हो उसके जीवन का अंत कर अपने जीवन को संवारने या विकसित करने का कर्म कर रचना और संहार का चक्र चलाया जिसने मनुष्य द्वारा प्रकृति के जीवन चक्र में निरंतर हस्तक्षेप का विस्तार किया।

अपनी विचारशीलता पर मानव को निजी एवं सार्वजनिक रूप से अत्यन्त गर्व रहा है। मानव ने विचार की शक्ति से ही शक्ति का विचार पाया है और अब वह केवल शक्ति सम्पन्न होकर भी संतुष्ट नही है। मानव अपने आप को सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने की एकाकी दौड़ में अस्त-व्यस्त हो चुका है। आज की दुनिया की अधिकांश विचार सहक्ति अपने आप को शक्तिशाली बनाने की निजी एवं सार्वजनिक आकाँक्षाओं की अनियंत्रित दिशा को अपनाने का विचार विरोधी एवं प्रकृति विरोधी मार्ग पकड़ती दिखाई देती है। इसी का नतीजा है की एक विचार से शक्ति हासिल होने का आत्मकेंद्रित तात्कालिक लक्ष्य हासिल करने के पश्यात वही मनुष्य नए विचार का स्वागत करने के बजाये उसके दमन के उपायों की शक्ति या साधनों के विस्तार एवं स्वहित में उसके एकछत्र उपयोग की उधेड़बुन में ही प्रवृत्त होकर , विचार के नए आयामों के विस्तार या साक्षात्कार से कतराने लगता है। इस तरह विचार की गति शीलता को क्षीण करके मानव मस्तिष्क की अनंतता को रोकने का प्रयास करता है।

दुनिया में अनगिनत मोनुश्यों के निरंतर प्रयासों-प्रयोगों से वैचारिक शक्ति की गतिशीलता का उदय हुआ। विचार के विस्तार और गतिशीलता से नए जन्मे मनुष्य को दुनिया की जटिल से जटिल समस्याओं को हल करते रहने की वैचारिक विरासत और हौसला मिला है। विचार शक्ति हममे से प्रत्येक को अपने जीवन की विचारशीलता को निरंतर बढ़ते रहने का निराकार वैचारिक हथियार हमें थमा देती है , जिसके बल पर हम सब अपने निजी एवं सार्वजानिक सपनो , संकल्पों एवं समस्याओं से जूओझ कर निरंतर विस्मित एवं अनुभव सम्पन्न होते रहते है। दुनिया की कई शक्तियां आम मनुष्य को विचार से जादा औजार , साधन या तकनीक के सहारे यांत्रिक विचाजीवन की कैद में दाल कर मोनुष्य की विचार यात्रा पर विराम लगाने की ऐसी उधेड़बुन में लगी है जिसमे विचारशील मनुष्य , मनुष्य निर्मित रोबोट की तरह हुकुम के गुलाम यांत्रिक जीवन का साधन बन जाए और अनंत विविधताओं वाली विचारशक्ति , साधन सम्पन्नों की एकरस धुन पर नाचने वाला जद्वध आकर पा जाए ।

मनुष्य ने अपने विचार के बल पर मनुष्यवत यांत्रिक क्रिया दोहराने वाले यन्त्र तो निर्मित कर लिए पर क्या विचार क्षीण यांत्रिक मानव हमारे विविध आयामी जीवन के विस्तार को कम या ख़त्म कर विचार के निराकार स्वरुप के अनंत विस्तार को बाँध सकेगा ? यह आज के यांत्रिक विकासकाल का सबसे बड़ा वैचारिक प्रश्नचिंह है , जिसका उत्तर सुविधाजीवी यांत्रिक दिमाग से नही , पराकरतिक जीवंत भावः के मस्तिष्क की विचारशीलता से ही ढूँढना होगा।


1 comment:

अशोक सोनाणा said...

शानदार प्रयास.....आभार.