भारत की आबादी इंडिया की ताकत है
भारत और इंडिया की अवधारणा आज़ाद भारत में चले विकासक्रम के आसपास ही घुमती रहती है | भारत याने प्राचीन भारत देश की विरासतवाला भारत का सामान्य वर्ग और इंडिया याने आधुनिक विकसित भारत का विशिष्ट सत्ता एवं सुविधाभोगी वर्ग | आज के भारत में इंडिया मौजूद है पर प्रायः इंडिया में हर जगह भारत की संस्कृति और सभ्यता-संस्कारों का वह स्वरुप दिखाई नहीं पड़ता जो भारत की मिटटी में हर कहीं व्याप्त है | भारत, इंडिया को देखकर खुश होता है, पर इंडिया भारत को देखकर असहज हो जाता है | विकसित इंडिया को प्रायः यह लगता है कि भारत पिछड़ा हुआ है और इंडिया को तेजी से और अधिक विकसित न होने देने का एक महत्वपूर्ण कारक है | भारत को इंडिया का विकास देखकर लगता है कि विकसित इंडिया भारत कि जड़ों को कटता जा रहा है |
भारत और इंडिया की जीवन दृष्टी, भाषा, भूषा, भवन, सोच, व्यवहार, रहन सहन एवं प्राथमिकता में अंतर बढ़ता ही जा रहा है | इंडिया का सपना समूचे भारत को इंडिया का अनुगामी बनाना है पर भारत के अंतर्मन में समग्र भारत को इंडिया की छाया प्रति बनाने देने का भाव नहीं है | भारत एक बहुत सरल, सहज पर गहरे वाले दर्शन कि उत्पादक, श्रमसाध्य कर्म प्रधान-जीवन शैली का नाम है | जबकि इंडिया की सतही, आरामदायक, चकाचौंधवाली, उपभोक्ता संस्कृतिवाली जीवन शैली है | इंडिया राज करना चाहता है जबकि भारत को स्वराज्य, स्वावलंबन, सादगी प्राकृतिक रूप से पसंद है | भारत किसी पर राज करना नहीं सबको साथ रखना चाहता है | भारत शांत, सहज, प्राकुतिक जीवनक्रम का हामी है पर इंडिया को भागमभाग एवं नित्य की अस्त व्यस्तता के बिना चैन नहीं है | भारत सबको साथ लेकर निरंतर जीना चाहता है तो इंडिया दूसरों की चिंता किये बगैर खुद आगे बह्दाना चाहता है | वैसे सामान्यतः देखा जाए तो "भारत" या "इंडिया" ये दोनों हमारे देश कि संज्ञा है | भारत और इंडिया इन दोनों शब्दों से सामान्यतः देश और दुनिया को हमारे देश का ही स्मरण होता है | पर आजादी पाने के बाद सन्देश में जिस तरह का आधुनिक विकास का क्रम चला उससे भारत और इंडिया इन दोनों संबोधनों से देश के तथाकथित आधुनिक विकास के दो स्पष्ट धाराओं का बोध हमे होता है | इस प्रष्ठ्बूमी के सन्दर्भ में भारत और इंडिया हिंदी और अंग्रेजी भाषा के महज शब्द न होकर देश के विकासक्रम का बोध करने वाले दो शब्द हो गए है | वैसे तो व्याकरण के दृष्टी से कभी भी किसी भी संज्ञा का अनुवाद नहीं होता पर हमारे देश कि माया ही निराली है यहाँ हम देश के संज्ञा को लेकर भी मतभिन्नता रखते है, भारत और इंडिया के रूप में | भारत के विभिन्नता और विरोधाभासों का एक अनोखा एवं अंतहीन सिलसिला जीवन के हर आयाम में चला आ रहा है पर इंडिया कि समग्र दृष्टी भौतिक-विकास और आर्थिक शक्ति पर पकड को लेकर है | भारत जीवन के हर आयाम का प्राकृतिक प्रबंधन है तो इंडिया केवल सत्ता और व्यापर के प्रबंधन का प्रतीक है |हमारे देश के एक धारा देश के समग्र प्राकृतिक प्रबंधन के दृष्टी से भारत को भारत ही बनाये रखना चाहती है याने भारत के साधनों से भारत को स्वावलंबी, सजग एवं स्वाभिमानी देश के रूप में सतत बने रहने देना चाहती है | देश को बहुत जल्दी तथाकथित आगे ले जाने के व्यग्रता में भारत से इंडिया में बदलने की दिशा में जाने वाले भारतीय इंडियनओं की संख्या भी हर दिन बढाती ही जा रही है, यह भी आज के भारत का सच है | यह भी सच है कि भारत के सहज प्राकृतिक प्रबंधन की स्वदेशिधरा इंडिया के प्रबंधकों को पिचादापन या विकासविरोधी एवं यथा स्थिति की पोषक अवधारणा लगती है |
इंडिया तेज़ी से एकाएक विकास का भौतिक मॉडल खड़ा करना चाहता है | जबकि भारत निरंतर सहज प्राकृतिक परिवर्तन के क्रम को जीना चाहता है | आजाद भारत में लगातार विअकसित होने वाले भोगोलिक इलाकों की दृष्टी से देखें तो विकेन्द्रित रूप से पूरे भरत में फैली हु सैट लाख से अधिक छोटी-छोटी ग्रामीण बसाहटों को हम भरता का प्रतिनिधि मान सकते है और देशभर में फैली हुई कुछ हज़ार शहरी बसाहटों के सम्रध शक्ति समूहों को इंडिया का प्रतिनिधि मान सकते है | इस तरह भारत ग्रामीण बसाहटों का प्रतीक है और इंडिया निरंतर फैलाते शहरी या महानगरीय विस्तार का प्रवक्ता है | इंडिया उद्योग, व्यापार, एवं उpaभोक्ता गतिविधियों का केन्द्रित गतिविधियों का संचालनकर्ता है | इंडिया भौतिक व्यवहार का प्रबंधन है तो भारत जीवन में व्यवहार का प्राकुतिक प्रबंधन है |
भारत राज और बाज़ार से ज्यादा समुदाय की गतिविधि है | भारत में आज भी समुदाय का सीधा व्यवहार चलता है और समुदाय की ताकत राज और बाज़ार की ताकत से ज्यादा प्रभावी है | भारत के ग्रामीण हिस्सों में आज भी हात के साप्ताहिक व्यवस्था प्रभावी है याने सप्ताह में एक दिन दैनन्दिनी जरूरतों की खरीदी बिक्रइ का व्यवहार निरधारित है एवं इंडिया में चौबीसों घंटों, बारह माह सिर्फ बाज़ार ही बाज़ार | बाज़ार के हाल से इंडिया बेहाल, बाज़ार चढ़ा तो इंडिया खुश, बाज़ार गिरा तो इंडिया निराश |
वैश्वीकरण और खुली अर्थव्यवस्था के इस दौर में आज भी भारत की कृषि एवं पशु आधारित अर्थव्यवस्था का अपना अनोखा जीवित अर्थशास्त्र है | भारत की अर्थव्यवस्था में आज भी बकरी, मुर्गी, दुधारू पशु एवं वास्तु, अनाज या श्रम विनिमय की एक प्रभावी एवं जीवंत आर्थिक व्यवहार की प्राचीन प्रणाली सहजता एवं सफलता से चल रही है | ग्रामीण भारत का आर्थिक व्यवहार साकार, वस्तुओं ( पशु, पक्षी, अनाज ) या श्रम के विनिमय पर आधारित है जिसमे तेजी मंदी का क्रम एकाएक नहीं आता और आर्थिक विनिमय के व्यवहार के सामान तनाव न होकर शांति एवं विश्वास बना रहता है | जबकि इंडिया का सारा आर्थिक व्यवहार अब निराकार स्वरुप में आंकड़ों का खेल हो गया है | तेजी मंदी कि सुनामी इंडिया के आर्थिक व्यवहार को सतत तनावपूर्ण एवं आशंकाग्रस्त बनाये हुए है | एकाएक लखपति से करोरेपति और करोडपति से लखपति बन जाने का खेल इंडिया की अर्थव्यवस्था का आम भाव बनता जा रहा है | इंडिया का सारा आर्थिक व्यवहार शुद्ध आंकड़ों का निराकार खेल हो गया है जिसमे असंभव घटनाचक्र भी संभव है |
भारत और इंडिया की ये परस्पर विरोधी जीवन के विकास की धाराएँ एक दुसरे की परस्पर विरोधी दिखाई देना के बाद भी एक दुसरे की पूरक भी बनती जा रही है | भारत और इंडिया की एक अरब से भी ज्यादा की मनुष्य संख्या आज की दुनिया के बाज़ार का सबसे बड़ा आकर्षण है | बीस करोड़ का इंडिया अस्सी-पिच्यासी करोड़ के भारत के कारण ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में एक आर्थिक शक्ति के रूप में विकसित होने का आभास दे रहा है |
इंडिया की आर्थिक अर्थव्यवस्था एवं प्रबंधन अतिशय खर्च या अनुत्पादक दिखावटी खर्च या बुनियादी जीवन की जरूरतों पर ही खर्च के सिद्धांत पर आधारित है | इसीलिए इंडिया की आबादी पैसों की दुनिया की गिरफ्त में आ गयी है, जबकि भारत की अधिकांश आबादी पैसों की द्रष्टि से इंडिया के मुकाबले अत्यंत गरीब नज़र आती है, उसके पास जीवन की बुनियादी जरूरतों पर खर्च करने लायक पैसा भी नहीं है | फिर भी वह संतोष और शक्ति के साथ जी रही है |
एक तरफ बिना साधन, बिना विकास और अधोसंरचना वाली भारत की कोटि-कोटि जनता है जो जीवन के प्राकृतिक प्रबंधन के सहारे अपना जीवा शक्ति एवं संतोषी भाव के साथ जी रही है और दूसरी तरफ इंडिया का आधुनिक विकसित समाज है जिसके विकास, अधोसंराचानागत खर्चों की कोई मर्यादा ही नहीं है | अपार सम्पदा का संग्रह होने पर भी इंडिया की इच्छा आकंखाओं की तृप्ति नहीं होती| इंडिया में भावों का आभाव स्पष्ट दिखाई देता है, पर भारत में अनंत आभाव होने पर भी जीवन के सरे भाव सहजता से दिखाई देते है |
भारत और इंडिया दोनों आपस में इस तरह रच बस गए है कि उन्हें अब अलग नहीं किया जा सकता | इंडिया को यह भूलना नहीं चाहिए कि भारत की मनुष्य संक्या की नींव पर ही इंडिया के आर्थिक-साम्राज्य की अट्टालिकाएं खड़ी हुई है | इंडिया के राज और बाज़ार का साम्राज्य भारत के संख्याबल को यदि समस्या मानाने की गलती करेगा तो वह इंडिया के राज और बाज़ार की चकाचोंध को खो बैठेगा और यदि इंडिया भारत की जनसंख्या को अपनी मूल पूँजी या शक्ति मानकर भारत और इंडिया के राज़, बाज़ार और जीवन की जरूरतों में सहज तालमेल बनाने की दृष्टी विकसित करेंगे तो आज की खुली अर्थव्यवस्था एवं वश्वीकरण के इस दौर में हम भारत और इंडिया दोनों की जीवन शैली का सहज एवं स्थायी प्रबंधन करने की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे |
यदि हमने अकेले इंडिया के विकास या सपनो के प्रबंधन को ही जोर शोर से अपनाया और भारत के अपनो के सपनो के बारे में नहीं सोचा तो फिर इंडिया की चकाचौंध को भारत की मजबूत नींव नहीं मिल पायेगी | भारत और इंडिया राज़, काज, बाज़ार और जीवन जीने की दो दृष्टियाँ हैं | भारत की जीवन शैली स्थानीय साधनों को अपनाकर व्यापक "वसुधेव कुटुम्बकम" की जीवन दृष्टी है और इंडिया विश्व अर्थ व्यवस्था से भरपूर एकांकी जीवन शैली का प्रतिरूप है जिसका विस्तार न केवल भौतिक संसाधनों के हिसाब से अत्यंत खर्चीलअ है वरन प्राकृतिक संसाधनों को भी थोड़े समय में ख़त्म या प्रदूषित करने की आशंका को भी फलीभूत कर सकता है | भारत और इंडिया का सतत सहयोगी अपनत्व का भाव भारत और इंडिया ही नहीं सभी याने सारी दुनिया के मंगलमय जीवन के द्वार खोल सकता है | यही भारत की विरत वैचारिक विरासत है जिसे इंडिया ने कम करके नहीं आंकना चाहिए |
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